गोस्वामी तुलसीदास (सोशल मीडिया से)
गोस्वामी तुलसीदास:
"राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरी द्वार। तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर।।"
(हृदय के द्वार पर राम नाम का दीपक रखो। तुलसीदास कहते हैं, यदि तुम भीतर और बाहर दोनों ओर प्रकाश चाहते हो, तो यही उपाय है।)
ये शब्द भारतीय जनमानस के सबसे प्रभावशाली कवि-संत गोस्वामी तुलसीदास के हैं। उनकी रचना 'रामचरितमानस' ने धार्मिक आस्था को नया आयाम दिया और हिंदी भाषा, भारतीय संस्कृति, सामाजिक मूल्यों और राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया। आज भी, उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक, करोड़ों भारतीयों के जीवन में उनकी उपस्थिति स्पष्ट है।
जन्म और प्रारंभिक जीवन: संघर्ष और किंवदंतियाँ
तुलसीदास का जन्म स्थान और समय पूरी तरह से स्थापित नहीं है, लेकिन प्रमुख मान्यताएँ उन्हें 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध (लगभग 1532 ई.) में राजापुर (वर्तमान चित्रकूट जिला, उत्तर प्रदेश) में एक सारस्वत ब्राह्मण परिवार में जन्मा मानती हैं। उनका बचपन का नाम रामबोला था। कहा जाता है कि जन्म के समय उनके मुख में दांत थे और उन्होंने रोने के बजाय 'राम' कहा, जो उनकी दिव्य प्रतिभा का संकेत है।
उनका बचपन कठिनाइयों से भरा था। माना जाता है कि जन्म के कुछ समय बाद ही उनकी माता का निधन हो गया और पिता ने भी उन्हें छोड़ दिया। उनका पालन-पोषण एक दासी ने किया। पत्नी रत्नावली से गहरे प्रेम के बावजूद, उनके एक कटु वाक्य ने उन्हें भक्ति की ओर मोड़ दिया और वे संन्यासी बन गए। उन्होंने संत श्री नरहरिदास से दीक्षा ली।
साहित्यिक यात्रा: अवधी को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने वाला महाकाव्य
तुलसीदास एक prolific रचनाकार थे। उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की, जिनमें प्रमुख हैं:
1. रामचरितमानस (अवधी): यह उनकी अमर कृति है, जिसे 'तुलसीकृत रामायण' या 'मानस' के नाम से भी जाना जाता है। यह महाकाव्य संस्कृत के वाल्मीकि रामायण को अवधी में प्रस्तुत करता है।
2. विनय पत्रिका (ब्रज): यह राम के प्रति भक्ति और आत्मनिवेदन से भरा काव्य संग्रह है।
3. कवितावली (ब्रज): रामकथा का संक्षिप्त लेकिन प्रभावी वर्णन।
4. गीतावली (ब्रज): रामकथा के विभिन्न प्रसंगों पर आधारित गीतों का संग्रह।
5. हनुमान चालीसा (अवधी): हनुमानजी की स्तुति का अत्यंत लोकप्रिय छंद।
धार्मिक प्रभाव: भक्ति का सागर
तुलसीदास का धार्मिक प्रभाव अतुलनीय है। वे रामानंद की परंपरा के प्रमुख संत थे और 'राम' को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रतिष्ठित किया।
उन्होंने निर्गुण ब्रह्म के स्थान पर सगुण राम की उपासना को बढ़ावा दिया। 'रामचरितमानस' का मूल आधार 'मर्यादा' है, जो नैतिकता और कर्तव्यपालन का संदेश देता है।
तुलसी ने भक्ति को जटिल कर्मकांडों से मुक्त किया और जाति-पाँति के भेदभाव को नकारा। उन्होंने नारी जाति और शूद्रों को भक्ति में उच्च स्थान दिया।
तुलसीदास का स्वप्न: रामराज्य की अवधारणा
तुलसीदास ने 'रामराज्य' की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसमें नैतिक शासन, सुखी प्रजा और प्रकृति एवं मनुष्य का सामंजस्य शामिल है।
उनका सपना था कि जहाँ राम का नाम सर्वत्र गूंजे और सभी प्राणी निर्भय होकर विचरण करें।
कालजयी प्रेरणा के स्रोत
गोस्वामी तुलसीदास केवल एक कवि नहीं थे, बल्कि वे एक सांस्कृतिक क्रांति के सूत्रधार थे। उनकी रचनाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी चार शताब्दी पूर्व थीं। जब तक भारतीय संस्कृति और हिंदी भाषा जीवित रहेंगी, तुलसीदास का नाम अमर रहेगा।
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